SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भार - - - মীমান্তিক্ষয় छाया-अतिभूमि न गच्छेत् , गोचराग्रगतो मुनिः । कुलस्य भूमि पात्या, मितां भूमि पराक्रामेत् ॥२४॥ सान्वयार्थः-गोयरग्गगओ-गोचरीमें गया हुआ मुणी साधु आभूमिगृहस्थकी मर्यादित भूमिसे अगाड़ी उसकी आमाके बिना न गच्छिना-नहीं जावे, (किन्तु) कुलस्स-गृहस्थके घरकी भूमि-मर्यादित भूमिको जाणिसाजानकर मियं भूमि जिस घरमें जहांतक नानेकी मर्यादा हो वहांवक ही परकमे-मावे ॥२४॥ टीका-'अइभूमि०' इत्यादि । गोचराग्रगतो मुनिः अतिभूमि-परमवेशाय गृहस्थाननुमतां भूमिमतिक्रम्य उल्लष्य न गच्छेत् । तर्हि किं कुर्यात् ? इत्याहकुलस्य भूमि-मर्यादां स्थित्ययधि ज्ञात्वा मिवांपरिच्छिन्नां स्वावस्थानयोग्याँ भूमि स्थान पराकामे गत्वा तिप्ठेतू, विपरीताचरणे हि गृहस्थरोपादिसम्भवः ॥२४॥ मूलम् तत्थेव पडिले हिज्जा, भूमिभागं वियखणो। सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवजए ॥२५॥ छाया--तत्रैव प्रतिलिखेत , भूमिभाग विचक्षणः । ___ स्नानस्य च वर्चसः, संलोकं परिवर्जयेत् ॥२५॥ - सान्वयार्थ:-तत्थैव-जिस मर्यादित भूमिपर खड़ा है उसी भूमिभागे-भूमिभागको वियक्खणो-विचक्षण साधु पडिलहिज्जा प्रतिलेखन फरे, अर्थात् वहाँकी 'अइभूमि० इत्यादि । जिस घरमें भूमिकी जितनी मर्यादा हो उसे उल्लंघन करके मुनि गृहस्थकी आज्ञा चिना आगे नहीं जावे, किन्तु उस कुलकी मर्यादाको जानकर गमन करने योग्य परिमित स्थान तकहीं जाकर खड़ा हो जाय-अर्थात किसीकी मर्यादाका उल्लंघन न करे। इसके विपरीत आचरण करनेसे गृहस्थको क्रोध आने आदिकी संभावना रहती है ॥२४॥ . अइमि. त्याहि. २ ५२मा भूमिनी नक्षी भर्या राय भने Gधीन મુનિ ગૃહસ્થની આજ્ઞા વિના આગળ ન જાય, પરંતુ એ કુળની મર્યાદાને જાણીને કસન કરવા ગ્ય પરિમિત સ્થાન સુધી જ જઈને ઊભા રહે, અર્થાતુ-કાઈની મર્યાદાનું ઉલંઘન ન કરે, એથી વિપરીત આચરણ કરવાથી ગૃહસ્થને ક્રોધ આદિ ઉત્પન્ન થવાની સંભાવના રહે છે. (૨૪)
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy