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श्रीदशकालिको फीडपयंगा-कीट-कीटे और पर्यगा-पतगिये ,य औरजा-जोकुयुपियालियान कुंथवा और चींटियाँ है, ये सव्वे येइंदिया-ए दीन्द्रिय सत्य तेइंदिया पर श्रीन्द्रिय सव्वे परिदिया सब चार इन्द्रियवाले सबै पंचिंदिया मन पत्रेन्द्रिय सन्चे तिरिक्खजोणिया सय तिर्यप्रगतिवाले सब्वे नेरड्या सन नारकी सब्वे मणुया सब मनुप्य सम्वे देवासय देव सत्वे-पूर्वोक्त सब पाणा-माणीमात्र परमाहम्मिया मुसके अमिलापी है। एसोन्यह खलु-निश्चय करके छटो-छठा जीवनिकाओ-जीवनिकाय तसकाउत्ति=" प्रसकाय " ऐसा पचइ-कहा जाता है ॥६॥
टीका-से-अय-स्थावरपञ्चकनिरूपणानन्तरं पुनः इमे-वक्ष्यमाणभेदार अनेके द्वीन्द्रियादिभेदेनाऽनेकमकाराः यहवा एकेकस्यां जाती प्रचुरा भिन्नया नयो वा असा: बसनामकर्मोदयात् , अस्पन्ति आवपायभिपीडिता उद्विजात प्रच्छायशीतलं स्थलं प्रयान्ति वेति तथोक्ताः प्राणन्ति जीवन्त्येभिारात माण्यन्ते जीन्यन्ते माणिन एभिरिति वा (मोपमुष्टा-दनितेः, अण्यतेवों करण घर) माणा उच्छ्वासादयस्ते सन्त्येपामिति प्राणा: माणिन इत्यर्थः, तद्यथा अण्डे-पक्ष्यादिमादुर्भावककोपे जायन्ते उत्पद्यन्ते इत्यण्डजा-पक्षि-सपादयः । पोता एव जाता पोतजाः न जरायबादिना वेप्टिताः पूर्णावयवयोनिनिगतमात्रा
१ 'सेः पचायच्' २ 'अशआदित्वादन्'
जो ये आवालप्रसिद्ध द्वीन्द्रिय आदिके भेदसे अनेक, एक एक जातिमें बहुतसे अथवा भिन्न-भिन्न योनिवाले आतप (गर्मी) आदिस पीडित होनेपर त्रास (उद्वेग) पानेवाले, अथवा छायादार शीतल आर निर्भय स्थलमें चले जानेवाले, व्यक्त चेतनावान, उच्छवास आदि प्राण वाले बस कहलाते हैं, उनके भेद इस प्रकार हैं
पक्षी सर्प आदि अण्डज हैं (१), जरायुसे वेष्टित न होकर योनिस
જે એ આબાલ-પ્રસિદ્ધ કીયિાદિના ભેદે કરીને અનેક, એક એક જાતિમ ઘણુ અથવા ભિન્ન-ભિન્ન નિવાળા, ગરમી આદિથી પીડિત થતાં સાર (ઉદ્વેગ) પામનારા, અથવા છાયાવાળા શતળ અને નિર્ભય સ્થળમાં ચાલ્યા જનારા, વ્યકત ચેતનાવાન્ ઉસ આદિ પ્રાણુવાળા બસ કહેવાય છે, તેના બે मारे छे:
પક્ષી સર્ષ આદિ અંડજ છે (૧). જરાયુથી વેતિ ન હઈને યોનિમાં