________________
श्रीदशवकालिकसूत्रे. 'अनुदरा कन्ये'-त्यत्रेय नमोऽल्पार्थकत्येन अल्पप्रावरणाः, यद्वामावरणरहिताः, वर्षासुम्पादकाठेपु, प्रतिसंलीनामवदिन्द्रियगोपनतत्परा भवन्तीत्यर्थः । ग्रीप्मादिपु बहुवचनमयोगः प्रतिवत्सरमेवंकरणसंमूचनाय ।। १२ ॥१२॥ मूलम्-परीसहरिउदंता, धूयमोहा जिइंदिया।
सवदुक्खप्पहीणटा, पक्कमति महेसिणो ॥१३॥ छाया-परीपहरिपुदान्ता, धूतमोहा जितेन्द्रियाः ।
सर्वदुःखमहीणार्थ, मनामन्ति महपिणः ॥१३॥ सान्चयार्थ:-परीसहरिउदंता परीपहरूपी शत्रुओंको जीतने वाले धूयमोहामोहममताके त्यागी जिइंदिया-इन्द्रियोंके दमन करनेवाले महेसिणो-महपिमुनिराज सव्वदुक्खप्पहीणहा-समस्त दुःखों के नाशके लिए पक्कमंति शक्ति फोडते हैं-उद्योग करते हैं ॥ १३ ॥
टीका-' परीसह०' इत्यादि ।
परीपहरिपुदान्ताः-परीपहा: क्षुधा-पिपासादय एव रिपत्रः शत्रवः पराभवकारित्वात् परीपहरिपा, दान्ता अन्तर्भावितण्यर्थतया दमिता निगृहीता दूर कर शीतकी आतापना लेते हैं, वर्षा ऋतुमें कछुवेकी तरह इन्द्रियोंका गोपन करने में तत्पर होते हैं।
ग्रीष्म, हेमन्त, और वर्षा-शब्द गाथामें बहुवचनान्त है, इससे यह आशय निकलता है कि प्रत्येक वर्षकी ऋतुओंमें ऐसा करते हैं ॥१२॥ 'परीसहः' इत्यादि।
क्षुधा-पिपासा प्रभृति परीपहरूपी शत्रुओंको पराजित करते हैं। વર્ષગાતુમાં કાચબાની પેઠે ઈન્દ્રિયનું ગેપન કરવામાં તત્પર રહે છે.
ગ્રીષ્મ, હેમા અને વર્ષો શબ્દ ગાથામાં બહુવચનાન્ત છે, તેથી એ આશય નીકળે છે કે પ્રત્યેક વર્ષની તુમાં એમ કરે છે (૧૨).
परीसह. त्या. लूम, तरस, त्या परी५९-३थी शत्रुभाने पलित ४३ छे.