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________________ श्रीदशनैकालिकसूत्रे १६२ te ૧૨ मूलम् - अहावए य नालीए, छत्तस्स य धारणाए । २० ११ २२ तेगिच्छं पाहणा पाए, समारंभं च जोड़णो ॥४॥ , छाया - अष्टापदं नालिकया, छत्रस्य धारणार्थाय ( धारणाऽष्टया ) | चैकित्स्यमुपानही पादयोः समारम्भव ज्योतिषः ॥४॥ सान्वयार्थ : - ( १८) नालीए जूए के उपकरण साधनसे अट्ठावए चौपड़ शतरञ्ज आदि खेलना, (१९) अट्टाए = मुट्ठी से छत्तस्स छातेका धारणं=धारण करना (२०) तेगिच्छं = रोगकी चिकित्सा करना (२१) पाए पाहणा=पैरोंमें जूते चंपल मौजे आदि पहिनना च= और (२२) जोडणी = अफ्रिका समारंभं= आरंभ करना ||४|| टीका - च तथा, नालिका = यथाऽभिमतपतनार्थे यया पाशाः पात्यन्ते सा = पाशपातनद्रव्यम् तया, उपलक्षणमेतत् - द्यूतोपकरणमात्रस्य, अष्टापदम् - अष्टौ अष्टौ पदानि = स्थानानि (गृहाणि) सर्वभागेषु यस्मिंस्तत्तथा वस्त्राssधारस्थानम्, इह च लक्षणया धूतसामान्यम् (१८), च=किञ्च छत्रस्य=आतपत्रस्य धारणार्थाय ग्रहणमिति शेषः । यद्वा-' धारणा अट्ठार' इतिच्छेदः, 'अट्ठा' इत्यस्य 'मुष्टि' रित्यर्थः, " चउहिं अट्ठाहिं लोयं करेइ' १ ' चतष्टभिरष्टाभिळींचं करोति' इतिच्छाया ॥ (१८) अष्टापद - 'नालीए' अर्थात् पासा फेंककर चौपड़, शतरंज आदि खेलना, अथवा अन्य प्रकारसे जुआ खेलना । (१९) छत्रधारण करना । गाथामें 'धारणडाए' ऐसा पद है उसे अलग अलग करनेसे 'धारणा अट्ठाए' होता है । यहाँ आट्ठा शब्दका अर्थ 'मुट्ठी' है । जम्बूदीपप्रज्ञप्तिमें कहा है कि- 'चउहि अहाहिं लोयं करेह' (१७) अष्टाय - नालीए अर्थात- पासा ईडीने थापर, शतरंग, माहि ખેલવાં, અથવા અન્ય પ્રકારે જુગાર ખેલવા, (१७) छत्र धार ४२. गाथाभां धारणाए मे यह छे, मेने छूट पाउपाथी धारणा + अट्ठाए थाय छे. खर्डी सुट्टी शण्डनो अर्थ 'भुडी' छे, भ्यू द्वीपप्रज्ञप्तिभां मधुं छे चउहिं अट्ठादि लोयं करेइ अर्थात्-ऋपलदेव भगवाने,
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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