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________________ अध्ययन १ गां. १ मुखवस्त्रिकाविचारः वेति भावः । तस्मात्-मुखोपरि मुखवत्रिकावन्धनं सकलजैनागमप्रतिपाद्यमिति सिद्धम् । एवं च भगवतीमूत्रे 'सुहुमकायं अणिज्जूहिताणं' इति वाक्यस्य सूक्ष्मकार्य=मुखवत्रिकाम् 'अणिज्जहित्ता'अपोह्य परित्यज्य-अवध्वेत्यर्थो वोध्या, एवमन्यत्राऽप्यूहनीयम् । ___ यत्तु-आचाराङ्गसूत्रे उच्छ्वासादिकाले मुखपिधानोपदेशेन मुखवत्रिका करेणैव धारणीया न तु दोरकेणेति तत्तत्समये एव मुखवस्त्रिकया घ्राणमुखादिपिधानं विधेयमिति च प्रतीयते, दोरकावलम्बन मुखवत्रिकायाः सदा धारणीयत्वे तु पुनर्मुखपिधानोपदेशो व्यर्थः स्यादिति बदन्ति तदज्ञानमूलम् । आचाराङ्गआज्ञाभंगमें गुरुतर प्रायश्चित्त देना युक्त ही है । इसलिये यह सिद्ध हुआ कि मुख पर मुखयस्त्रिका बांधना सय जैनशास्त्रोंमें प्रतिपादन किया गया है । इस प्रकार भगवती-सूत्रके 'सुहुमकायं अणिजूहित्ताणं' वाक्यका अर्थ यह समझना चाहिये कि 'मुखवत्रिकाका त्याग करके अर्थात् नं ..यांध करके।' ऐसा सब जगह समझना चाहिए। . ... प्रश्न-आचाराङ्गास्त्रमें उच्छास आदि लेते समय मुख ढंकने का उपदेश दिया है। इससे यह प्रतीत होता है कि मुखवस्त्रिका हाथमें ही रखनी चाहिए डोरेसे नहीं बाँधनी चाहिए, अमुक-अमुक समय पर ही जय उच्छ्वास आदि आवे तय ही नाक या मुख ढंक लेना चाहिए। डोरेसे मुखवस्त्रिका धारण करना उचित हो तो पुनः मुख ढंकनेका उपदेश व्यर्थ हो जायगा। ભંગમાં ગુત્ર પ્રાયશ્ચિત્ત આવે છે. એ રીતે સિદ્ધ થયું કે મુખ પર મુખવસ્ત્રિકા બાંધવી એવું બધાં જૈનશાસ્ત્રોમાં પ્રતિપાદન કરેલું છે. એટલા भाटे भगवती-सूत्रना 'मुहुमकायं अणिज्जूदित्ताणं से वायनअर्थ सम समायो " 'भुभवन्निानी त्या शनेअर्थात् न मांधीन.' १ . प्रभार 'मधी या सभा . . પ્રશ્ન-આચારાંગ-સૂત્રમાં ઉચ્છવાસ આદિ લેતી વખતે મુખ ઢાંકવાને ઉપદેશ આપે છે. એથી એમ પ્રતીત થાય છે કે મુખવસ્ત્રિકા હાથમાં જ રાખવી જોઈએ, દેરાથી બાંધવી જોઈએ નહિ. અમુક અમુક સમયે જ જ્યારે ઉછુવાસ આદિ આવે ત્યારે જ નાક ચા મુખ ઢાંકી લેવું જોઈએ, દેરાથી મુખવંઅિંકા 'पा२५ ४२वी सिताय तो पछी पुन: भुण iपानी पहेश व्यर्थ य ...
SR No.009362
Book TitleDashvaikalika Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages725
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size21 MB
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