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________________ HD. Irrina . .. . .. . कल्पसूत्रे 9वेगयुक्त गति से चलकर जहां सिद्धार्थ राजा थे वहां पहुंची। पहुंचकर सिद्धार्थ राजाको सिद्धार्थरा पुत्रजन्मसशब्दार्थे | जय विजय ध्वनि से वधाया, वधा कर दोनों हाथ जोड मस्तक पर अंजलि करके इस निवेदनम -॥८६॥ | प्रकार बोली हे देवानुप्रिय ! आज त्रिशला देवीने नौ मास साढे सात दिन पूरे होने पर एक-पुत्र को जन्म दिया है इसलिये हम हे देवानुप्रिय आपको प्रियवाक्य से निवेदन । Ril करते हैं। आपका प्रिय हो। फिर सिद्धार्थ राजा उन दासियों के मुखसे जन्मरूप - इस अर्थ को सुनकर हृष्टतुष्ट हुआ, उनके चित्त में बहुत प्रसन्नता हुई, अति हर्ष के कारण उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया, एवं उन सिद्धार्थ राजाने दासियों का मधुर kil वचनों से और विपुल पुष्प, गंध माल्य-फूलों की मालाओं से सत्कार किया सम्मान on किया, सत्कार सन्मान करके फिर उसने उन्हें मस्तक धौत किया-अर्थात् दासीपने के - कृत्य से मुक्त कर दिया और पुत्र पौत्र भोग्य योग्य आजीविका से युक्त कर दिया। अर्थात् उन्हे इस प्रकार की जीविका लगादी की जिससे उनके पुत्र पौत्र तक भी बैठे २ खा ॥८६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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