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कल्पसत्रे
सशब्दार्थे ॥८८८॥
भावार्थ:-१६ आर्य-धर्माचार्य, १७ भद्रगुप्त स्वामी, १८ वइर स्वामी, यह तीनों ॥ गणधराणां
नामादिकम् आचार्य द्वादश तप नियमादि गुणगण करके वजहीर समान को वन्दना करता हूं ॥३१॥ ... मूलभू-वंदामि अज्जक्खिय, खमणेरक्खिय चरित्त सव्वेसं । रयणकरंडग भूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहिं ॥३२॥
भावार्थ-१९ आर्य रक्षित स्वामी क्षमा करने में महा समर्थ मूल गुण उत्तर गुण में दोषरहित, रत्न करंड समान अर्थ ग्रहण करने की रीति के प्रवर्तक है उनको वन्दन करता हूं ॥३२॥
मूलभू-नाणंमि दंसणंमिय तव विणए निच्चकाल मुज्जत्तं ॥ अज्जे नंदि लक्खणं सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥३३॥ . भावार्थ-२० ज्ञानदर्शन चारित्र तप ज्ञान विनय में सदैव उद्यमवंत सदैव प्रस- T૮૮૮ાા