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कल्पसूत्रे - सशब्दार्थे
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जन्म
होगी ? कैसे मैं इनके मातापिता के पास जाऊंगा ? क्या कहंगा ? । इस प्रकार विचार |
Hशक्रेन्द्रक्रतकरके शक्रेन्द्र आर्तध्यान से युक्त होकर चिन्ता करने लगे।
तीर्थकरफिर 'किसने ऐसा किया है?' यह सोचकर शक्र देवेन्द्र देवराज को क्रोध आगया। महोत्सवः क्रोध की अग्नि से वह प्रज्वलित हो गये। उनने अवधिज्ञान का उपयोग लगाया। तब अवधिज्ञान से अपना ही दोष जानकर भगवान् तीर्थंकर के चरणमूल में दोनों हाथ जोडकर और मस्तक पर आवर्त एवं अंजलि करके वह इस प्रकार बोले-'हे भगवन् ! मैंने जाना है, हे भगवन् ! मैंने अच्छी प्रकार जाना है, हे भगवन् ! मैंने खूब अच्छी | प्रकार जाना है, हे भगवन् ! मैंने सुना है, हे भगवन् ! मैंने अनुभव भी कर लिया है। कि जो अर्हन्त भगवान् अतीतकाल में हो चुके हैं, जो अर्हन्त भगवान् वर्तमान में है,
और जो अर्हन्त भगवान् भविष्य में होंगे, वे सभी अनन्तबली, अनन्तवीर्यवान्, अन- Itill न्तपुरुषकार-पराक्रम के धनी होते हैं। इस प्रकार बोलकर उनको वन्दना की, नमस्कार
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