________________
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥ ८४१ ॥
SS3003300SE
संखा, साहुकेवलीणं पंचसयोत्तर चत्तारिसहस्स संखा, केवलसाहुणणं नव सहस्स संखा, छ सयोत्तर तिष्णिसहस्स ओहिनाणीणं संखा पंचसयोत्तर चत्तारि सहस्स, मणपज्जवनाणीणं संखा, चउद्दसपुव्वीणं नवसया संखा, वेडब्बियलद्धिधराणं सत्तसहस्रसंखा, वाईणं अट्ठाइससया संखा, सासणकालो तिण्णिपल्लोवमो णूणं तिण्णिसागरोवमं, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया । सासणदेवो किन्नरो, सासणदेवी पण्णगा ॥
१५ श्रीधर्मनाथ प्रभु का चरित्र
भावार्थ — धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वविदेह में भरतनामक विजय में भद्दिलपुर नाम का नगर था। वहां दृढरथ नाम का राजा राज्य करता था । उसने विमलबाहन मुनि के समीप दीक्षा ली और कठोर साधना कर तीर्थकर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्तिम
PRODKEELS0930
धर्मनाथ प्रभोः चरित्रम्
॥ ८४१ ॥