________________
॥८३७॥
कल्पसूत्रे संखा एगसहस्सा, वेउव्वियलद्धिधराणं संखा अट्ठसहस्सा, वाईणं संखा बत्तीस अनन्तनाथ
प्रभोः सयाई, सासणकालो चत्तारि सागरोवमो, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासण- चरित्रम् Hदेवो पायालो, सासणदेवी अगुसा ॥
१४ श्रीअनन्तनाथ प्रभु का चरित्र । भावार्थ-धातकीखण्ड द्वीप के प्रागविदेहक्षेत्र में ऐरावत नामक विजय में अरिष्ट नाम की नगरी थी। वहां पद्मरथ नाम के राजा राज्य करते थे। वे धर्मात्मा एवं न्यायप्रिय थे। उन्होंने चित्ररक्ष नाम के आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की और साधना के । सोपान पर चढते हुए तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया। कालान्तर में वे आयुष्य पूर्ण करके प्राणत देवलोक में उत्पन्न हुए।
वहां से च्यवकर दसवें देवलोक, देवलोक की स्थिति २० सागरोपम, जन्म नगरी वा