________________
शब्दार्थे
ल्पसूत्रे संकल्प हुआ कि शिरीष के कुसुम के समान सुकुमार यह शिशु भगवान् इतने जल- शकेन्द्रक्रत
तीर्थकरपूर्ण महाकलशों की अत्यन्त विशाल जलधारा को किस प्रकार सहेंगे ?
जन्म७२।
शक्र के इस प्रकार पांचो प्रकार के विचार अवधिज्ञान से जानकर, उनकी शंका Milil महात्सवः को दूर करने के लिये, अतुल बल और पराक्रम वाले तीर्थंकर भगवान् ने अपने पैर के l
अंगुठे के अग्रभाग से सिंहासन के एक भाग का स्पर्श किया, तब भगवान् तीर्थंकर के in अंगुठे के स्पर्शमात्र से मेरु पर्वत कांपने लगा, मानो 'महापुरुषों के चरणस्पर्श से मैं | पावन हो गया' ऐसा सोचकर हर्ष से हिलने लगा हो ॥२२॥
मूलम्-जं समयं च णं मेरु कपिउमारद्धो. तं समयं च णं पुढवी कंपिया, समुद्दो खुद्धो, सिहराणि पडिउमारद्धाणि। तेसिं सयलजगजीवजायहियय विदारगो भयभेरवो महासदो समुन्भूओ। तिहुयणसि महं कोलाहलो जाओ। लोगा । भयभीया जाया। सव्वजंतुणो भयाउला सयसयट्ठाणाओ निस्सरिय को अम्हाणं ॥७२॥