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________________ शीतलनाथ प्रभोः कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥८२०॥ का मोक्वं चरित्रम् दुवालससहस्सा, वाईणं संखा अदावण्णसयाई, सासणकालो एगसयछावट्रिलक्ख छव्वीससहस्सवरिसं ऊनं एगकोडिसागरोवमं, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया। सासणदेवो बंभणो, सासणदेवी असोगा ॥१०॥ १०-श्रीशीतलनाथ प्रभु का चरित्रपुष्कराई द्वीप के वज्र नामक विजय में 'सुसीमा' नामकी नगरी थी। वहां | | 'पद्मोत्तर' नामके राजा राज्य करते थे। उन्हें संसार की असारता का विचार करतु हुए वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने अस्ताद्य नाम के आचार्य के समीप दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेकर वे कठोर तप करने लगे। तीर्थङ्कर नाम कम उपार्जन के बीस स्थानों में से कई स्थानों का आराधनकर उन्होंने तीर्थकर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्त समय में संथारा कर वे प्राणत नामक देव विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। ... ८२०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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