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कल्पसत्रे
पद्मप्रभु
सशब्दार्थे
चरित्रम्
॥८०२॥
चउद्दसपुव्वी संखा तिसयोत्तर दोसहस्सा, वेउव्वियलद्धिधराणं संखा अनुसयोत्तर सोलससहस्सा, वाईणं संखा छण्णउइ सया, सासणकालो नवकोडिसागरोवमों, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो कुसुमो, सासणदेवी अच्चुया नामा॥
६-पद्मप्रभस्वामी का पूर्वभव धातकी खण्डद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र के वत्स विजय में सुसीमा नामकी नगरी | थी। वहां 'अपराजित' नामके शूरवीर राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में सारी प्रजा सुख पूर्वक निवास करती थी।
: एक बार अरिहंत भगवान् का नगरी में आगमन हुआ। राजा भगवान् के दर्शन | || करने गया और उनकी वाणी सुनने लगा । भगवान् की वाणी सुनकर उसे वैराग्य हो
गया। उसने अपने पुत्र को राजगद्दी पर विठला कर उत्सव पूर्वक भगवान् के समीप
॥८०२॥