________________
कल्पहने सशब्दार्थ ॥७९३॥
अभिनंदन लद्धिधारिणं संखा सोलससहस्सा, वाईणं संखा एक्कारससहस्सा, सासणकालो ।।
प्रभोः | नवलक्खकोडिसागरोवमो, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया। सासणदेवो ईसरो, चरित्रम् सासण देवी काली णाम ॥
४-श्री अभिनंदन स्वामी का पूर्वभवजम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में मङ्गलावती नामक विजय में 'रत्नसंचया' नाम की नगरी थी। वहां 'महाबल' नाम का राजा था। उन्होंने संसार से विरक्त होकर विमल आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की। वहां पर तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया। वह अन्त में । अनशन पूर्वक देह त्याग कर जयन्त नामक अनुत्तर विमान में महर्द्धिक देव बना। ___जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में 'अयोध्या' नामकी नगरी थी। वहां इक्ष्वाकुवंश तिलक' 'संवर' नामके राजा थे। उस संवर राजा के 'सिद्धार्था' नामकी रानी थी। जयन्त विमान से चवकर वैशाख शुक्ला चतुर्थी के दिन महारानी 'सिद्धार्था' की कुक्षि में
॥७९३।।