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________________ कल्पसूत्रे दार्थे 1106411 अयोध्या नगरी में पिता का नाम जयशत्रु था । माता का नाम विजया था । विजय विमान में तेतीस सागरोपम का आयु पूर्ण करके उनकी कुक्षि में वैशाख शुद्ध त्रयोदशी के दिन आये, माघ कृष्ण अष्टमी के दिन जन्म हुआ । अठारह लाख पूर्व कुंवरपद और त्रैपनलाख पूर्व राज्यगादी पर आरुढ थे। सुप्रभा नामकी शिबिका में बैठकर वैशाख सुदि नवमी के दिन एक हजार परिवार सहिन दीक्षा ग्रहण की। पहेली भिक्षा देनेवाले का नाम ब्रह्मदत्त था । पहेली भिक्षा में क्या मिला ? खीर मिला, छद्मस्थ अवस्था के बारह वर्ष चैत्यवृक्ष का नाम सप्तवर्ण, पोषशुक्ल एकादशी के दिन केवल कल्याणक, चैत्र शुक्ल पंचमी के दिन निर्वाण कल्याणक हुआ । उनका देहप्रमाण चारसौ पचास धनुष्य, वर्णकांचन, लक्षण गज, नायक गणधर सिंहसेन, अग्रणी साध्वी फाल्गुणी, प्रव्रज्या समय एक लाख पूर्व, गणधर संख्या नव्वे, साधु संख्या एक लाख, साध्वी संख्या तीन लाख तीस हजार, श्रावक संख्या दो लाख अट्ठानवे हजार, श्राविका संख्या अजितनाथ प्रभोः चरित्रम् ॥७८५||
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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