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अजितना
भोः
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ७८४॥
चरित्रम्
वनाणीणं संखा पंचसय पन्नासोत्तर दुवालससहस्सा, चउद्दसपुग्विणं संखा सत्तसय बीसोत्तर तिसहस्सा, वेउव्वियलद्धिधारिणं संखा चत्तारि सयोत्तरबीससहस्सा, वाईणं संखा चत्तारि सयोत्तर बीससहस्सा, सासणकालो तीस कोडि सागरोवमा, असंखेज्जा पट्टा मोक्खं गया, सासणदेवो महाजक्खो, सासणदेवी अजिया आसी।
अजितनाथ भगवान् के पूर्वभव.. वत्स नामक देश में सुसीमा नाम की नगरी थी। विमलवाहन नामका राजा था। उन्होंने अरिंदम मुनि के पास दीक्षा ली। वहां पर बीस स्थानक की आराधना करके तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया। वहां से मरकर विजय नामक अनुत्तर विमान में तैंतीस सागरोपम की आयुवाला देव हुआ।
॥७८४॥