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________________ कल्पसूत्रे सधन्दार्थ ॥७५९॥ | जिनकल्प (८) तीन चारित्र-परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात (९) केवल- प्रभवस्वामि परिचयः ज्ञान और १० मोक्ष । जंबूस्वामी के मुक्त होने पर यह दस स्थान विच्छिन्न हुए ॥४८॥ .. - मूलम्-सिरि जंबूसामिम्मि मोक्खं गए तप्पट्टे सिरि पभवसामी उवावि-: सीय। तउप्पत्ती चेवम्-विंझायल समीवे जयपुराभिहाणं नयरं आसि । तत्थ विंझो णाम णरवइ होत्था। तस्स पुत्तदुगं आसि एगो जेट पभवाभिहाणो, अवरो कणि? पभवाभिहाणो। तत्थ जे?पभवो केणवि कारणेणं कुद्धो जयपुरनयराओ निस्सरिय विंझायलस्स विसमत्थले अभिणवं गाम वासित्ता तत्थ निवसी। सो य चोरिय लुटणाइगरिहवित्तिं ओलंबीअ। एगया तेण आकण्णियं जं राय- .. गिहे नयरे जंबू नामगो उसभदत्तसेट्टिपुत्तो अटु सेट्ठि कण्णाओ परिणी। दाये तेणं ससुरेहिंतो णवणवइ कोडि परिमियाओ सुवण्णमुद्दाओ लडाओ त्ति। ... ||७५९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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