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________________ शब्दार्थे ॥७५४॥ सम्मत्तो अम्मापिउणं दढागहेण अटुकण्णाओ परिणीअ ] शीलव्रत और सम्यक्त्व धारण किया । माता पिता के प्रबल आग्रह से आठ कन्याओं के साथ विवाह किया [विवाहरती सो सरिहाइ ताहि वाणीहिं न वामोहिओ] सुहागरात में वह स्नेहवती पत्नियों की प्रेम पूर्ण वाणी से मोहित न हुए [सोय परोप्परं कहापडिकहाहिं ता अट्ठवि इत्थओ पडिबोहीअ] उन्होंने परस्पर कथाओं के उत्तर में कथाएं कहकर आठों पत्नियों Intrata fear | [तीए रत्तीए चोरियटुं गिहे पविट्टं नवनवइ अब्भहिएहिं चउहिं चोर एहिं परिवुडं प्रभवाभिहं चोरंपि पडिबोहिअ ] उसी रात्रि में चोरी करने के लिये घर में घुसे चार सौ निन्यानवे ( ४९९ ) चोरों सहित प्रभव नामक चोर को भी प्रतिबोfur किया [त पच्छा उइयम्मि दिणयरे पंचसय चोरभजट्ठग तजणगजणणीहि सिद्धिं ] उसके बाद दिन उगने पर पांचसौ चोरों आठों पत्नियों के माता पिता एवं अपने माता पिता के साथ [सयं पंचसयसत्तावीसइइमो होउणं णवणवईओ कणगकोडीओ जम्बूस्वामि परिचयः ॥७५४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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