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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ।
जम्बूस्वामि परिचयः
॥७५३॥
एत्थ दुवे संगहणी गाहाओबारसवरिसेहि गोयमु, सिद्धो वीराउ वीसहि सुहम्मो। चउसट्ठीए जंबू, वुच्छिन्ना तत्थ दस ठाणा।
मण १ परमोहि २ पुलाए ३ आहारग ४ खवग ५ उवसमे ६ कप्पे ७ संज। मतिग ८ केवल ९ सिझणा १० य जंबुम्मि वुच्छिन्ना ॥२॥ ॥४८॥
... शब्दार्थ-[रायगिहे नयरे उसभदत्तस्स सेट्रिणो धारणीए अंगजाओ पंचमदेवलोगाओ चुओ जंबूनाम पुत्तो होत्था] राजगृह नगर में ऋषभदत्त श्रेष्ठी की धारिणी नामक भार्या की कुंख से उत्पन्न पंचम देवलोक से आये हुए जंबू नामक पुत्र थे [सो
य सोलसवरिसाओ सिरि सुहम्मसामि समीवे धम्म सोच्चा पडिबुद्धो] सोलह वर्ष की - उम्र में सुधर्मा स्वामी के समीप धर्म को सुनकर प्रतिबोध पाया [पडिवण्ण सील
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॥७५३॥