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कल्पसूत्रे शब्दार्थे
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सिवं ए] वीस वर्ष बीत जाने पर जम्बूस्वामी को अपने पाट पर स्थापित करके मोक्ष गये ॥४७॥
भवार्थ- कोह्लाक नामक ग्राम में, धम्मिल नामक ब्राह्मण था । उसकी पत्नि भद्दिला थी । सुधर्मास्वामी उसी के उदर से उत्पन्न हुए। वह ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्यौतिष और छन्द इन छह वेदांगों में तथा मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र और पुराण इन सब चौदह विद्याओं में पारंगत थे । पचासवें वर्ष के अन्त में उन्होंने दीक्षा अंगीकार की । उसके बाद तीस वर्ष तक श्री मान स्वामी के समीप निवास करके, भगवान् महावीर स्वामी के पश्चात् वारह वर्ष तक छद्मस्थ - पर्याय में रहकर, जन्म से बानवें (९२) वर्ष के अन्त में, गौतमखामी मोक्ष जाने के बाद केवलज्ञान प्राप्त करके, आठ वर्ष तक केवली - पर्याय में स्थिर रहकर एक सौ वर्ष की समस्त आयु भोगकर, श्रमण भगवान् महावीर के मोक्षगमन के
सुधर्म
स्वामि
परिचयः
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