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गौतम
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥७२६||
|स्वामिनः |विलापः केवलज्ञानप्राप्तिश्च
पवित्ती विपरिया जाया] यह तो विपरीत ही बात हुइ! [सह णयणं ताव दूरे चिटउ परं अंतसमए ममं दिट्टीओऽवि दूरे पक्खिवीअ] अरे साथ लेजाना तो दूर रहा किन्तु अन्तिम समय में मुझे नजरों से भी ओझल फैंक दिया [को अवराहो मए कओ जं एवं कयं] मैंने ऐसा क्या अपराध किया था जो आपने ऐसा किया [अहुणा को ममं गोयमगोयमेत्ति कहिय संबोहिस्सइ] अब गौतम ! गौतम कह कर कौन मुझे संबोधन करेगा ? [कमहं पण्हं पुच्छिस्सामि] अब मैं किससे प्रश्न पूछंगा [को मे हिययगयं पण्हं समाहिस्सइ] कौन मेरे हृदयगत प्रश्न का समाधान करेगा? [लोए मिच्छंधयारो पसरिस्सइ तं कोणं अवाकरिस्सइ] लोक में मिथ्यात्व का जो अंधकार फैलेगा, उसे कौन दूर करेगा ? [एवं विलवमाणे गोयमसामी मणंसि चिंतीअ] इस प्रकार विलाप करते करते गौतमस्वामीने मन में विचार किया [सच्चं जं वीयरागा रागरहिया चेव हवंति] सच है वीतराग, रागरहित ही होते हैं [जस्स नामं चेव वीयरागो से कंसि रागं करेजा ?]
॥७२६॥