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________________ ॥७२४॥ कल्पसूत्रे , विया। तप्पभियं सा रयणी लोए दीवालियत्ति पसिद्धा जाया। नवमल्लई गौतम स्वामिनः सशब्दार्थे नवलेच्छइ कासी कोसलगा अद्वारस वि गणरायाणो संसारपारकर पोसहो विलापः केवलज्ञानववासदुगं करिंसु। बीए दिवसे कत्तियसुद्धपडिवयाए गोयमसामिस्स केवल प्राप्तिश्च माहिमा देवेहिं कया, तेणं तं दिवसं नूयणवरिसारंभदिवसत्तणेण पसिद्धं जायं। भगवओ जेदुभाऊणा नंदिवद्धणेण भगवं मोक्खगयं सोच्चा सोगसायरे निमज्जिएण चउत्थं कयं। सुदंसणाए भइणीए तं आसासिय नियगिहे आणाविय चतुत्थरस पारणगं कारियं तेण सा कत्तियसुद्धविइया भाउबीयत्ति पसिद्धिं पत्ता॥४३॥ - शब्दार्थ-तए णं से गोयमसामी समणस्स भगवओ महावीरस्स निव्वाणं सुणिय]. उसके बाद गौतमस्वामीने श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ सुनकर [वजाहए। विव खणं मोणमवलंविय थद्धो जाओ] क्षणभर मौन रहकर वजाहत की तरह सुन्न हो ॥७२४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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