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कल्पसूत्रे सशब्दार्ये
बालादि
॥७०५॥
वैशालीनगरी और वाणिज्य ग्राम में (१६) चौदह राजगृह नगर में-नालंदा नामक पाडे । चन्दनमें (३०) छह मिथिला में (३६) दो भदिलपुर में (३८) एक आलंभिका नगरी में (३९) ,
राजएक श्रावस्ती नगरी में (४०) और एक वज्रभूमि नामक अनार्य देश में (४१) हुआ। कन्यकानां इस प्रकार भगवान् के इकतालीस चौमासे व्यतीत हुए। तत्पश्चात् जनपद विहार
दीक्षा
- ग्रहणादिकं । करते हुए भगवान् अन्तिम बयालीसवां चौमासा करने के लिये पावापुरि में हस्तिपाल .. राजा के पुराने चुंगीघर (जकातस्थान) में स्थित हुए ॥४०॥
मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया जेणेव पावापुरी नयरी जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स . अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हतुटू० एवं वयासी-पभो निव्वाणसमयं संनिकिटुं जाणिऊण सांजलिपुटं निवेययामो गब्भ, जम्भ, दक्खा, केवलणाण
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