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कल्पसूत्रे
सामाचारी वर्णनम्
सशब्दार्थे ॥६७२॥
ACCIA
होती है । चैत्र एवं आश्विन मास में त्रिपदा पौरूषी होती है ॥१३॥ मूलम्-अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेणं तु दुअंगुलं ।
वड्ढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥१४॥ भावार्थ-साढे सात ७॥ दिनरात के काल में एक अंगुल पौरूषी बढती है। एक - पक्ष में दो अंगुल पौरूषी बढती है। एक मास में चार अंगुल बढती है । तथा उत्तरायण में इसी क्रम से घटती है। ये प्रत्याख्यान आदि में अपेक्षित होती है ॥१४॥ ___मूलम्-आसाढ बहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य। - ... ..
- फग्गुण वइसाहेसु य, जायव्वा ओमरत्ताओ ॥१५॥ भावार्थ-१४ दिनों का पक्ष, आषाढ कृष्णपक्ष में, भाद्र कृष्णपक्ष में कार्तिक कृष्ण पक्ष में, पौष कृष्णपक्ष में, फाल्गुन वैशाख कृष्णपक्ष में १४-१४ दिन के पक्ष होते हैं ॥१५॥
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