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________________ कल्पसूत्रे भगवच्छासनावध्यादि कथनम् । भावार्थ-प्रथम एवं अंतिम इन दो अरिहंतों के साधु साध्वीओं को भंडोपकरण सशब्दार्थे वस्त्र पात्र उपधी नियम से श्वेत वर्ण सफेद रंग की कल्पता है ॥३७॥ वस्त्र ॥६६॥ ____ मूलम्-तीहिं ठाणेहिं वत्थे धरेज्जा, तं जहा-हिरिवत्तियं, दुगंछावत्तियं, परिसहवत्तियं ॥३८॥ शब्दार्थ--[तीहिं ठाणेहिं वत्थे धरेज्जा] तीन कारणों से वस्त्र धारण करना मुनिराजों को कल्पता है-[तं जहा] जैसे-[हिरिवत्तियं] संयम के आराधना के लिये १, [दुगंछा वत्तियं] लोकनिन्दा के निवारण के लिये [परिसहवत्तियं] परीषह जीतने के H लिये अथवा परिषह रोकने के लिये वस्त्र रखना कल्पता है ॥३८॥ भावार्थ--तीन कारणों से वस्त्र धारण करना मुनिराजों को कल्पता है वे इस प्रकार हैं-संयम के आराधना के लिये १, लोकनिन्दा के निवारण के लिये २, परीषह जीतने के ॥६६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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