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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६५॥
सभी [अविहिपंथे] अविधि मार्ग में [पडिस्संति] पड जायेंगे [ते सव्वे] वे सभी [पुव्वु- भगवच्छात्ताइं] पहले कहे गये [कज्जाइं] कार्यों का [सछंदेणं] स्वच्छंदपने से [करिस्संति] करेंगे- सनावध्या
. दि कथनम् [गोयमा ?] हे गौतम ! [जयाणं] जब [भासग्गहे] भस्मग्रह [णिवट्टिए भविस्सइ] निवर्तित होगा तब [पुणो] फिर से [मम] मेरे [सासणेणं] शासन में [उदए] उदय [पूया] पूजा-सत्कार [भविस्संति] होंगे [साहणं] साधुओं का तथा [साहुणीणं वि] साध्वियों का तथा [सावयाणं वि] श्रावकों का [सावियाणं वि] श्राविकाओं का भी । [उदय पूया भविस्संति] उदय और पूजा सत्कार होगा ॥३३॥
भावार्थ-गौतमखामी श्री महावीर प्रभु को प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् आपका शासन कब होयमान होगा ? कब पुनः उदित होगा? और कितने काल पर्यन्त शासन स्थिर होगा ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभुश्री गौतमखामि से कहते हैं-हे गौतम ! एकवीस हजार वर्ष पर्यन्त मेरा शासन स्थिर रहेगा उसके बीच में दो हजार वर्ष पर्यन्त ।
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