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________________ भगवच्छा S कल्पसूत्रे [से केणट्रेणं] किस कारण से [भंते] हे भगवन् ऐसा आप कहते हैं ? [गोयमा] हे IA सशब्दार्थे सनावध्यागौतम [बहवे] अनेक [मुणिणामधारी] मुनि के नाम को धारण करनेवाले अर्थात् नाम ॥६५०॥ दि कथनम् मात्र से मुनि कहलाने वाले [सेयं वत्थं] श्वेत वस्त्र को [रयहरण] रजोहरण [मुहपत्ति. मादियं] मुहपत्ति आदि [उवहिं] उपधि को [ण सलिंगं मनिस्संति] स्वलिंग नहीं मानेंगे [केइ मुणिणो] कितनेक मुनि [मुहपत्तिबंधणं] मुहपत्ति बंधण को [कालपमाणं] समय प्रमाण अर्थात् अमुक समय में बांधने का उपदेश [करिस्संति] करेंगे। ते सव्वे I मुणी] वे सब मुनि [अविहिमग्गेणं] अविधि मार्ग से [उवएसं] उपदेश [करिस्संति] करेंगे [बहवे मुणिणो] अनेक मुनिगण [जिणपडिमं कराविस्संति] जिनप्रतिमा को करावेंगे [बहवे मुणिणो] बहुत से मुनि [जिण पडिमाणं] जिन मूर्तियों की [पइटें] प्रतिष्ठा [कराविस्संति] करावेंगे [बहवे मुणिणो] बहुत से मुनि [जिणपडिमाणं] जिन प्रतिमा की [ठावया] स्थापना करनेवाले [भविस्संति] होंगे [जाव] यावत् यहां तक [सव्वे वि] ये ॥६५०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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