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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे उपध्यादौ ममतापरि ॥ ४ ॥ . .. SH लिया हुआ है उसमें [अवि] तथा [अप्पणो वि] अपनी [देहमि] देहमें भी [ममाइयं] ममता भाव [नायरंति] अंगीकार नहीं करते ॥३२॥ ____ भावार्थ-धर्मशास्त्र के ज्ञाता मुनिजन, जीवरक्षा के वास्ते ली हुई उपधि पात्र, रजोहरण, मुखवस्त्रिका (सामान) में तथा अपने शरीर में किसी प्रकार की ममता नहीं करते ॥३२॥ मूलम्-तुम्हाणं भंते ! सासणे कया हायमाणे भविस्संति कया उदिए भविस्संति केवइयं कालं सासणे ठिइए भविस्सइ ? गोयमा! एगवीसं वाससहस्सेहिं मम सासणे ठिए भविस्सइ अंतराय दो वासं सहस्सहिं मम सासणे हायमाणे भविस्सइ । से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ ? गोयमा ! मम जम्मनक्खत्ते भासरासी नामे महग्गहे संकंते तस्स पहावेणं दो वाससहस्सेहिं साहूणं वा I MELIST |॥६४६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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