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________________ SAMANARTELANANCIES __ कल्पसूत्रे : उसके पीछे आचार्य इस प्रकार कहे-हे देवानुप्रिय ! चोईस लोगस्तव ध्यान में-मनमें सामायिक चारित्रसशन्दार्थे बोलना चाहिये लोगस्स के पाठ से कायोत्सर्ग करे । तत्पश्चात् शिष्य कायोत्सर्ग नवकार धारणादि ॥६३०॥ मंत्र से पालकर एक लोगस्स बोले उसके पीछे शिष्य इस प्रकार कहे-हे भगवन् आप|| विधि मुझे सामायिकचारित्र अंगीकार करावे फिर आचार्य कहे-हां अंगीकार करवाता हूं ॥२४॥ मूलम्-तओ पच्छा आयरिए एवामेव सामाइयं चरित्तं पडिवज्जावेह तए णं सेहे ससद्ध आयरियवयणानुसारं एवं वएज्जा करेमि भंते सामाइयं । सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जाव जीवाए तिविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणेमि मणसा वयसा कायसा तस्स भंते " पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । तओ पच्छा सेहे थय थुइ । मंगलं अवरनामं दू नमोत्थुणं भणेज्जा तएणं आयरिए सेहं सिक्खावेइ णो ॥६३०॥ mema
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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