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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥६२९॥ बादरवायुकायानां 'सूक्ष्म नामकारणम् उसको मुख के साथ बांध कर तदनन्तर रजोहरण पादकेसरिका-गुच्छे को कांख में लेकर हाथ में पात्रे को बांधने के वस्त्र लेवें जिस वस्त्र में पात्रों को रखकर पात्रों को बांधते है, उसको पात्र बन्धन वस्त्र कहते हैं। इसी प्रकार से पात्रस्थापक-जिस वस्त्र पर पात्र रखे जाते हैं वह एवं इसी प्रकार से अन्य सभी उपधि को जान लेना चाहिये। रजोहरण पात्रबन्धन पात्राच्छादन वस्त्रादि ग्रहण करने के वाद आचार्य को वंदना करे नमस्कार करे वंदना नमस्कार करके पूर्व दिशा की ओर मुख रख के अथवा गुरुके सन्मुख मुख रख कर दोनों हाथ जोडकर खडा रहे फिर इस प्रकार गुरु को कहे-हे I भगवन् आप मुझ को सामायिक चारित्र अंगीकार करावे । फिर वह आचार्य इस प्रकार कहे हे देवानुप्रिय ! एक नवकार मंत्र पढो इसके पीछे इरियावही जिसका दूसरा नाम गमनागमन है इस आलोचना सूत्र को बोलो। उसके बाद तस्योत्तरीकरण यावत् आत्मा | को वोसराता हूं यहां तक का पूरा पाठ जैसा गुरु भणावे उस प्रकार शिष्य भणे। H ॥६२९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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