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कल्पमत्रे
सशब्दार्थे
मेतार्यप्रभासयोः शङ्कानिवारणम् प्रव्रजनं च
- ||५९५॥
तिसओ हवइ गच्छे एवं पहुसमीवे सव्वं चोयालसयादिया पव्वइया ॥२१॥
इइ गणहरवाओ' - शब्दार्थ-[मेयज्जो वि नियसंसयछेयणठं तिसयसीसेहिं परिवुडो पहुसमीवे समागओ] मेतार्य भी अपने संशय को दूर करने के लिए तीनसौ शिष्यों के साथ प्रभु के समीप पहुंचा। [भगवं तं वएह] भगवान ने मेतार्य से कहा-[भो । मेयज्जा ! तव मणंसि इमो संसओ वट्टइ-] हे मेतार्य ! तुम्हारे मनमें यह संशय है कि [परलोगो नत्थि] परलोक नहीं है। [जओ वेएसु कहियं-विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय पुनस्तान्येवानुविनश्यति न प्रेत्य संज्ञाऽस्ति' इच्चाइ] क्योंकि वेदों में ऐसा कहा है 'विज्ञानघन आत्मा इन भूतों से उत्पन्न होकर फिर उन्हीं में लीन हो जाता हैं । परलोक नामकी कोई संज्ञा नहीं है । इत्यादि; [तं मिच्छा] तुम्हारा यह संशय मिथ्या है [परलोगो अत्थिचेव अन्नहा जायमेत्तस्स बालस्स माउथणदुद्धपाणे सन्ना
। ॥५९५॥