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शक्रेन्द्रकत
कल्पसूत्रे सशब्दार्थ
तीर्थकर
जन्ममहोत्सवः
भावार्थ-उस सिंहासन से वायव्य कोन उत्तर व ईशान कोन में शक देवेन्द्र के ८४००० सामानिकदेव के चौरासी हजार भद्रासन कहे हैं पूर्वदिशा में आठ अग्र- | महिषियों के आठ भद्रासन कहे हैं ऐसे ही अग्नि कोन में आभ्यन्तर परिषदा के बारह हजारदेव, के दक्षिण में मध्य परिषदा के चौदह हजार देव के नैऋत्य कोन में बाहिरकी परिषदा के सोलह हजार देव के पश्चिम में सात अनिकाधिपति के सात भद्रासन कहे हैं और उसके चारों दिशा में ३३६००० तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देव के उतने भद्रासन कहे हैं यह सब सूर्याभदेव जैसे कहना यावत् इस प्रकार | विमान बना करके वह पालक देव आज्ञा पीछे देता है ॥११॥ ____ मूलम्-तएणं से सक्के देविंदे देवराया जाव हट्ठहिअए दिव्वं जिणंदाभिगमणजुग्गं सव्वालंकारविभूसियं उत्तरवेउव्वियं रूवं विउव्वइ २ त्ता अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं सर्परिवाराहिं गट्टाणीएणं गंधव्वाणीएण य सद्धिं तं विमाणं
॥४९॥
Hamar