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कल्पसूत्रे
मंडित
सशब्दार्थे
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मौर्यपुत्रयोः शङ्कानिवारणम् अवजन च
को कौन जानता है ? ऐसा कहा है' [तं मिच्छा] तुम्हारा यह विचार मिथ्या है [वेएवि स एष यज्ञायुधी यजमानोऽञ्जसा स्वर्गलोकं गच्छति इइ वयणं विज्जइ] वेदों में भी यह वाक्य है-'यज्ञरूप आयुध (शस्त्र) वाला यज्ञ कर्ता शीघ्र ही स्वर्गलोक में जाता है [जइ देवा न भवेज्जा ताहे देवलोगो पि न भवेज्जा] यदि देव न होते तो देवलोक भी नहीं होता [एवं सइ 'स्वर्गलोकं गच्छति' इइ वयणं कहं संगच्छेज्जा] ऐसी अवस्था में स्वर्गलोक में जाता है' यह कथन कैसे संगत हो सकता है ? [एएणं वक्केणं देवाणं सत्ता सिज्झइ] इस वाक्य से देवों की सत्ता सिद्ध होती है। [अच्छउ ताव सत्थवयणं पस्सउ इमाए परिसाए ठिए इंदाइ देवे] परन्तु शास्त्र के वाक्यों को रहने दो, इसी परिषदा में स्थित इन्द्र आदि देवों को देख लो [एवं पञ्चक्खं एए देवा दीसंति] ये देव प्रत्यक्ष ही दिखाई दे रहे हैं [एवं पहुस्स वयणं सोच्चा निसम्म मोरियपुत्तो छिन्नसंसओ अधुटु सयसीसेहिं पव्वइओ] प्रभु के इस प्रकार के वचन सुनकर और समझ कर मौर्यपुत्र भी
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