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शक्रेन्द्रक्रत
कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥४७॥
तीर्थकर
जन्ममहोत्सव
| मणियों का वर्ण गंध रस व स्पर्श राजप्रश्नीय सूत्र से जानना उस भूमिभागके मध्य
बीच में प्रेक्षागृह मंडप कहा है वह अनेक स्तंभवाला यावत् प्रतिरूप है उस प्रेक्षागृह मंडपके बहुत रमणीय भूमि विभाग के मध्य बीच में एक बडी मणिपीढिका कही है यह आठ योजन की लम्बी चौडी व चार योजन की जाडी है सर्वांग मणिमयी है वगैरह वर्णन करना उस पर एक सिंहासन वह भी वर्णन युक्त है इस पर दिव्य देवदूष्य-वस्त्र ढका है सर्वांग रजत मय वगैरह वर्णन युक्त है। उसके ऊपर मध्य बीच में एक वज्ररत्न मय अंकुश कहा है यहां पर एक वडे कुंभी समान मुक्ताफल की माला है उसके आसपास उससे आधे प्रमाणवाली चार कुंभिका समान माला कही है, वे मालाओं तपनीय सुवर्णमय उंचे प्राकार से परिमंडित हैं विविध प्रकार के मणियों व रत्नों से विविध प्रकारके हार अर्धहार से सुशोभित है आनंद उत्पन्न करनेवाला है परस्पर किंचिन्मात्र नहीं लगता हुआ पूर्वादि दशों दिशा के वायु को घेर कर हलते हुए यावत्
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