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शक्रन्द्रकत
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
तीर्थकर
॥४६॥
जन्ममहोत्सव
णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोहिया समुइया ईसिं अण्णमण्णसंपत्ता पुयाइएहिं वाएहिं मंदं मंदं एज्जमाणा २ जाव निव्वुइकरेणं सद्देणं ते पएसे आपूरेमाणा २ जाव अईव २ उवसोहेमाणा २ चिट्ठति ॥१०॥
भावार्थ-तत्पश्चात् वह पालक देव शक देवेंद्र से ऐसा सुनकर हृष्टतुष्ट होता है यावत् वैक्रिय समुद्घात करके वैसा ही करता है उस दिव्य यान विमान को तिन दिशा में तीन त्रिसोपान होते हैं उन पंक्तियों के आगे तोरण कहे हैं यावत् प्रतिरूप हैं उस यान है विमान के अंदर बहुत सम रमणीय भूमि विभाग कहा है जैसे मृदंग का तल होता है
यावत् दीपडेका चर्म होता है उसमें अनेक खीलों जडे हुवे होते हैं आवर्त प्रत्यावर्त श्रेणी प्रश्रेणी स्वस्तिक वर्धमान पुष्यमान मच्छ के अंडे मगर के अंडे स्त्री पुरुष के जोडे कंदर्पचेष्टा पुष्पावली पद्मपत्र सागर तरंग वसंत ऋतुकी लता पद्मलता वगैरह के चित्रवाला कांतिप्रभा श्री व उद्योत वाली पांच प्रकार की मणियों सहित सुशोभित है उन
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