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________________ सशन्दाथे ॥५५३॥ व्यक्तस्य शङ्कानिवारणम् प्रव्रजनं च मुनि ही साक्षात् कर सकते हैं। यदि शरीर से पृथक् जीव न हो तो वेद का यह वाक्य किस प्रकार संगत होगा? इससे सिद्ध कि शरीर से भिन्न जीव की सत्ता है। इस प्रकार प्रभु के कथन से वायुभूति का संशय हट गया। वह अपने पांचसौ शिष्यों के साथ दीक्षित हो गया ॥१५॥ . मूलम्-तए णं वियत्ताभिहो माहणो वि विमरिसइ जे इमे वेयत्तयीसरूवा महापंडिया तओ वि भायरा छिन्न णिय णिय संसया पव्वइया, अओ इमो कोवि अलोइओ महापुरिसो पडिभासइ, तयंतिए अहमवि गच्छामि, जइ सो ममं संसयं छेइस्सइ, ताहे अहमवि पव्वइस्सामित्ति, कटु सो वि पंचसय'सिस्सपरिवारपखुिडो पहुसमीवे समागच्छइ। पहू य तं नामसंसयनिद्देसपुव्वं आभासेइ भो वियत्ता ? तुझ मणंसि 'पुढवी आइ पंचभूया न संति, ॥५५३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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