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________________ गार को इन्द्रभूतेः कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥५१॥ हाथ से दीक्षा दी [इंदभूई अणगारे मणवजवनाणे समुप्पणे] इन्द्रभूति अनागार को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हो गया [छट्टछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा निवारणम् अप्पाणं भावेभाणे विहरइ] बेले बेले निरन्तर यावज्जीव तपः कर्म से, संयम से और प्रतिबोधश्च अनशनादि बारह प्रकार की तपस्या से आत्माको भावित करते हुए विचरते थे। [तेणं कालेणं तेणं समएणं गोयमगोत्ते इंदभूई अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासीजाए] उस काल और उस समय गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अंतेवासी अनगार हुए [इरियासमिए भासासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिठावणिया समिए] ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति उच्चार प्रस्रवण श्लेष्मशिंघाण जल्लपरिष्ठापना समिति [मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वयगुत्ते ॥ काययुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तबंभयारी] मनःसमिति वचनसमिति, कायसमिति, मनगुप्ति । ॥५१६॥ ॐ
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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