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________________ अंतिमोपसर्ग कल्पसूत्रे । इधर सिद्धार्थ नामक सेठ और खरक वैद्य-दोनों उद्यान में पहुंचे । भगवान् कायोत्सर्ग सशन्दाथे में स्थित थे। उन्होंने अत्यंत कुशलतापूर्ण युक्ति से भगवान् के दोनों कानों में से ठोकी ॥३८८॥ हुई वह कीलें निकाली । यद्यपि दोनों कानों में से कीलें बाहर निकालने में भगवान् को अतीव दुस्सह व्यथा हुई फिर भी चरमशरीरी अर्थात् तद्भवमोक्षगामी होने के कारण तथा अनन्त बल से संपन्न होने के कारण भगवान् ने उस उत्कृष्ट, उग्र भयानक और अधीर पुरुषों द्वारा असह्य वेदना को भली भांति सहनकर लिया। सिद्धार्थ सेठ 1 और खरक वैद्य औषधोपचार से भगवान् महावीर को निरोग करके अपने २ घर चले गये। इस पापकर्म के कारण वह गुवाल मृत्यु के अवसर पर मर कर सातवें नरक में गया। सेठ सिद्धार्थ और खरक वैद्य दोनों यथासमय शरीरत्याग कर उस पुण्य कर्म 1 के उदय से बारहवें अच्युत नामक देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुए ॥सू०५८॥ . . . मूलम्-तएणं से समणे भगवं महावीरे इरियासमिए, जाव गुत्तबंभयारी, ॥३८८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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