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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥ ३६६॥ परपुरिसपरिरंजणं] वेश्या बोली- मैं गणिका हूं परपुरुषों का मनोरंजन करना मेरा कार्य है [ती एरिसं हियवियारगं अणारियं वज्जपायं वित्र वयणं सोच्चा सा कंदिउ मारभीअ ] गणिका के इस प्रकार के हृदय विदारक अनार्य और वज्रपात के समान व्यथा जनक वचन सुनकर वह रोने लगी । [तीए अट्टनायं सोच्चा तत्थडिओ घणावहो सेट्ठी चिंतीअ - ] उसका आर्तनाद सुनकर वहां खडे धनावह सेठ ने विचार किया - [इमा कस्सवि रायवरस्स ईसरस् वा कन्ना दीस ] यह किसी उत्तम राजा की या धनिक की कन्या दीखती है [मा इमा आवयाभायण होउ' ति चिंतीअ सो तइच्छियं दव्वं दच्चा तं कन्नं घेत्तूण नियभवणं नई अ] यह आपत्ति का पात्र न बने तो अच्छा, ऐसा सोचकर गणिका को इच्छित धन देकर वसुमती को अपने घर ले आया [सेट्ठी तब्भज्जा मूला य तं णियपुत्तिं विव पालिउं पोसिउं वक्कमीअ] सेठ और उसकी पत्नी मूला, अपनी पुत्री के समान उसका पालन पोषण करने लगे [एगया गिम्हकाले अण्णभिच्चाभावे सा वसुमई सेट्टिणा चंदन वालायाः चरित - वर्णनम् ॥३६६॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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