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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥३३१॥ मका , भगवत आचारपरिपालनविधे.. वर्णनम् थे। आतापना लेते समय उकडू आसन से बैठते थे । भगवान् ने ओदन [भक्त], | मथु-बोर आदि का चूरा और उड़द, इन तीन और रूखे और बासी अन्नों का ही सेवन | करके आठ महीने बिताये । भगवान् ने अर्धमास [एक पक्ष], एक मास, कुछ दिन अधिक दो मास और छह मास तक अशन पान खादिम और स्वादिम आहारों का परित्याग किया और अप्रतिज्ञ होकर निरन्तर विहार करते रहे। पारणा में वासी अन्न का सेवक किया। कभी-कभी भगवान् चित्त की स्वस्थता का विचार करके अप्रतिज्ञ भाव से बेला करके आहार करते थे, कभी तेला करके, कभी चौला करके और कभीकभी पंचोला करके, पाप के दुष्ट फल को जानकर महावीर स्वामी ने प्राणातिपात आदि पापकर्मों का स्वयं सेवन नहीं किया, दूसरों से सेवन नहीं कराया और पापों का सेवन करनेवाले का अनुमोदन नहीं किया' ग्राम अथवा नगर में प्रवेश करके महावीर भगवान् ने दूसरे जनों के लिए बनाये हुए आहार की गवेषणा को । आधाकर्म आदि
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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