________________
कल्पसूत्रे
सशब्दायें
भगवत आचारपरिपालनविधे वर्णनम्
॥३२६॥
[गिम्हे य आयावीअ] ग्रीष्म ऋतु में आतापना लेते थे [आयावे य उक्कुडुए अच्छीय] आतापना लेते समय उत्कुटुक आसन से बैठते थे [अहय भगवं ओयणं मंथु कुम्मासं चेयाणि तिण्णि लूहाणि सीयलाणि पडिसेविय अट्टमासे जावइत्था] भगवान् ने ओदन मंथु [बेर का चूरा] और कुल्माष [उडद] इन तीन ठंडी और वासी वस्तुओं का सेवन करके आठ मास बिताये [तओय भगवं अद्धमासं साहिए दुवे मासे छम्मासे य असणाइयं परिहाय राओवरायं अपडिण्णे विहरित्था] भगवान् ने अर्धमास, मास ढाइ मास
और छमास तक अशन आदि का परित्यागकरके, अप्रतिज्ञ (अपेक्षा रहित) होकर विहार किया [पारणगेवि गिलाणमन्नं भुंजित्था] पारणे के समय भी वासी (ठंढा) भोजन किया [एगया कयावि छठेण कयावि अहमेणं दसमेणं दुवालसमेणं समाहिं पेहमाणे अपडिण्णे भगवं भुंजित्था] कभी बेला कभी तेला, कभी चोला, कभी पंचोला, करके समाधि को देखते हुए अप्रतिज्ञ भगवानने विहार किया [णच्चा य से महावीरे
॥३२६॥