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________________ तिर्थकरा. भिषेकनिरूपणम् अनि कल्पसूत्रे .. ऊर्ध्वलोक में रहनेवाली आठ दिशाकुमारियों के आसन चलते हैं तब वे अपने अवधिसबन्दार्थे ज्ञान से तीर्थंकर का जन्म हुवा देखते हैं वगैरह पूर्वोक्त कथन सब यहां कहना यावत् ॥२२॥ हम ऊर्ध्वलोक में रहनेवाली आठ दिशाकुमारियां हैं हम भगवान् तीर्थंकर का जन्म का अभिषेक करेंगे इससे तुम डरना नहीं यों कहकर ईशानकोन में जाकर यावत् बद्दलकी विकुर्वणा करती हैं यावत् पानी वर्षाकर रजका नाश करती है उसे उपशमा देती हैं सब रज को नष्ट भ्रष्ट कर फिर शीघ्रमेव ऐसे ही पुष्पों की वृष्टि करती हैं यावत् काला गुरू कुंदुरुक तुरुक्क इत्यादि धूप की सुगंध से एक योजन पर्यंत मघमघायमान करती हैं । यावत् देवों के आने जैसी जगह करती है वहां से भगवान् तीर्थंकर व उनकी माता जहां होती है वहां आकर उनके पास यावत् विशिष्टतर गाती हुई खडी रहती है ॥३॥ .. उस काल उस समय में पूर्व में रुचक कूट पर रहनेवाली आठ दिशाकुमारियां यावत् । विचरती हैं जिनके नाम-नंदुत्तरा, नंदा, आनंदा, नंदीवर्धना विजया वैजयंति, जयंति ॥२२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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