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________________ करपपत्रे सबदार्ये ॥२०॥ तीर्थकरा| भगवान् तीर्थकर व उनकी माता को तीन वार आदान प्रदक्षिणा करके दोनों हाथ भिषेक| जोडकर मस्तक से आवर्तना करके अंजलि सहित ऐसा बोलती हैं-अहो जगत् के प्रदीपको निरूपणम् जन्मदेने वाली व रत्नकुक्षि धारण करनेवाली तुमको नमस्कार होवो, जगत् में मंगल करनेवाले अज्ञान से अंध बने हुए जीवों को चक्षुसमान सब जगज्जीव के वत्सलहितकारक मार्ग दर्शानेवाले पुद्गल सुख में गृद्धता रहित रागद्वेष को जीतनेवाले ज्ञानी धर्म के नायक स्वयं सब पदार्थ को जानने वाले सबको तत्वज्ञान बताने वाले सब लोक के नाथ सब जगत् में मंगल समान निर्ममत्वी, श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न होनेवाले क्षत्रियकुल में जन्म ग्रहण करनेवाले और लोक में उत्तम ऐसे उत्तम पुरुष की तुम जननी हो तूम धन्य है, कृत पुण्यवाली तुम हो. अहो देवानुप्रिये ! हम अधोलोक में रहनेवाली महत्तरिका आठ दिशाकुमारी देवियां हैं, हम तीर्थंकर के जन्म का महोत्सव करेंगे। इस ! से तुम डरना नहीं, यों कहकर ईशानकोन में जाकर वैक्रिय समुद्घात करती है संख्यात ॥२०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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