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करपसूत्रे
भगवतो विहार
सशब्दार्थे
॥३०॥
भगवं महावीरे राइंदियं जयमाणे अप्पमत्तें समाहिए झाई। तत्थ तस्सुवसग्गा नीया अणेगरूवा य हविंसु, तं जहा-संसप्पगा यजे पाणा ते, अदुवा पक्खिणो भगवं
स्थानउवसग्गिसु। पहुरूवमोहियाओ इत्थियाओ य भगवं उवसग्गिसु। सत्तिहत्थगा वर्णनम् गामरक्खगा य किंपि अवयमाणं भगवं चौरसंकाए सत्थाभिघाएण उवसग्गिसु।। भगवंते सव्वे उवसग्गे अहियासीअ। अह य इहलोइयाइं परलोइयाई अणेग| रूवाइं पियाई अप्पियाई सदाइं, अणेगरूवाई भीमाइरूवाई अणेगरूवाई सुन्भि
दुब्भिगंधाई, विरूवरूवाई फासाइं सया समिए रइं अरइं अभिभूय अवाई | समाणे सम्म अहियासी।
सुण्णागारे राओ काउसग्गे ठियं भगवं कामभोगे सेविउकामा परत्थी सहिया एगचरा समागया पुच्छंति-कोऽसि तुम' त्ति, तया कयावि भगवं न
॥३०
AmAntati
॥