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________________ समभाव: कल्पसूत्रे । भगवान् को बहराने से अपना संसार अल्प किया, नागसेन के घर में आगे कही जाने- उपकाराप कारविपये सभन्दाथै वाली पांच दिव्य वस्तुओं का प्रादुर्भाव हुआ, अर्थात् पांच दिव्य वस्तुएं प्रगट हुई। भगवतः ॥२७२॥ वे यह हैं-(१) देवों ने स्वर्ण की वर्षा की (२) पांच वर्षों के पुष्पों की वर्षा की (३) वस्त्रों की । वृष्टि की (४) दुंदुभियां बजाई (५) आकाश में 'अहोदान अहोदान' की घोषणा की ॥४९॥ ___ मूलम्-तएणं से समणे भगवं महावीरे तओगामाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सेयंबियाए नयरीए मज्झं मज्झेणं विहरमाणे जेणेव सुरहिपुरं णयरं तेणेव । उवागच्छइ । तए णं महारण्णे सुण्णागारे रत्तीए काउसग्गे ठिए। तत्थ णं भगवओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि माई मिच्छादिदी एगे संगमाभिहे देवे अंतियं पाउब्भूए । तए णं से देवे आसुरुत्ते रुद्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसिमाणे काउसग्गद्रियं पहुं एवं वयासी-हे भो भिक्खू! अपत्थियपत्थया ! सिरिहिरि- ॥२७२॥ AE
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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