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वाचालग्रामे नागसेनगृहे भगवतो
भिक्षाHT ग्रहणम्
कल्पसूत्रे | आठवें देवलोक में अठारह सागरोपम की स्थिति वाला, एक ही भव करके मोक्ष में सशब्दार्थे
जाने वाला देव हुआ। देवायु की समाप्ति के पश्चात्, वहां से च्युत होकर वह महावि॥२६४॥
देह क्षेत्र में सिद्ध होगा ॥४८॥ ..मूलम्-एवं णं समणं भगवं महावीरे चंडकोसियसप्पोवरि उवयारं
किच्चा ताओ अडवीओ पडिनिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता उत्तरवायालाभिहे ... गाम समागच्छइ । तत्थ एगो णागसेणो नाम गाहावई परिवसई तस्स एगो
एव पुत्तो आसी। सो विदेसगओ बारस वरिसाओ अकालवुट्ठी विव अकम्हा गिहे समागओ। अओ सो णागसेणो पुत्तागमणमहोच्छवम्मि विविह असणपाणखाइमसाइमाई उवक्खडावेइ, उवक्खडावित्ता मित्तणाइणियग-सयणसंबंधिपरियणे भुंजावेइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं पक्खोववासपारणगे
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