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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
॥२६३॥
प्राप्त करो, क्रोध को तज दो, तज दो, अर्थात् पूरी तरह - त्याग दो, क्यों कि पूर्व भव में क्रोध के कारण ही तुम काल मास में काल करके सांप हुए हो। इस भव में भी वही क्रोध रूप पाप कर रहे हो, इस पाप का आचरण करने से आगामी भव नरक आदि गर्हित गति प्राप्त करोगे, क्यों कि क्रोध दुर्गति का कारण है, अतः तुम भी अपनी आत्मा को मोक्ष के मार्ग में लगाओ। इस प्रकार के वीर भगवान् के बोध जनक उपदेश को सुनकर चंडकौशिक विचारों के समुद्र में डूब गया । उसे अपनी पूर्वभव संबंधी जाति का स्मरण हो आया। पूर्व भव के जाति स्मरण से उसे विदित हो गया कि मैं क्रोध - प्रकृति के कारण ही काल धर्म को प्राप्त हुआ था तब उसने पश्चात्ताप किया और अपने हिंसक स्वभाव को त्याग कर शांत स्वभाव धारण कर लिया । तत्पश्चात् वह तीस भक्त अनशन से छेद कर, प्रशस्त ध्यान के साथ, काल मास में काल करके, अठारह सागरोगम की उत्कृष्ट स्थिति वाले सहस्रार नामक
चण्डकौ
शिकस्य
भगवदुप विषप्रयोगः चण्डकौ - शिकप्रति -
वोध
॥२६३॥