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कल्पसूत्रे सशब्दार्थे
॥२५६॥
goard को पगडी नियमरणं विण्णाय पच्छायावं करिय हिंसयपगडिं विभुं - चिय संतसहावो संजाओ । तए णं से सप्पे तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता सुण झाणेण कालमासे कालं किच्चा उक्कोसओ अट्ठारस सागरोवमट्ठिइए सहस्साराभिहे अद्रुमे देवलोए उक्कोसडिइओ एगोवयारो देवो जाओ। महाविदेहे सो सिन्झिस्स ॥ ४८ ॥
शब्दार्थ - [तए णं से चंडकोसिए विसहरे कुद्धे समाणे बिलाओ बाहिरं निस्सरिय काउसग्गट्टियं पहुं दवणं चिंतिअ ] तब वह चण्डकौशिक सर्प क्रुद्ध होकर बिल से बाहर निकला और कायोत्सर्ग में स्थित प्रभु को देखकर सोचने लगा- [केरिसो इमो मच्चुभयविप्पमुको मणुस्सो जो खाणू विव थिरत्तणेण ठिओ] कौन है यह मौत के भय से मुक्त मानव जो ठूंठ की भांति स्थिर होकर खडा है ? [संपइ चेव इमं अहं
चण्डकीशिकस्य
भगवदुप विषप्रयोगः
चण्डकौशिकप्रति -
बोधश्व
॥२५६॥