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________________ करपसूत्रे सान्दायें H२३९॥ चण्डको शिक वल्मिकपार्श्व भगवतः कायोत्सर्गः गमणागमणाभावाओ चरणाइचिंधरहिया जहट्ठिया चेव। जलनालियाओ जलाभावेण सुक्काओ। जुण्णा रुक्खा तव्विसजालाए दड्ढा सुक्का य। सडियपडियजुण्णपत्ताइ संघाएण भूमिभागो आच्छाइओ, वम्मीयसहस्सेहिं संकेतो लुत्तमग्गो य आसी। कुडीरा सव्वे भूमिसाइणो संजाया। एयारिसीए महाडवीए भगवं जेणेव चंडकोसियस्स वम्मीयं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ काउसग्गेण ठिए ॥४७॥ । शब्दार्थ-[अह य सेयंबियाए णयरीए दो मग्गा संति-एगो वंको बीओ उज्जू] श्वेताम्बी नगरी के दो मार्ग थे एक टेढा और दूसरा सीधा [तत्थ जे से उज्जुमग्गे तत्थ il एगा वियडा महाडवी अस्थि] जो मार्ग सीधा था, उसमें एक विकट महाअटवी पडती थी [तीए विवडाए महाडवीए चंडकोसीओ नाम एगो दिदिविसो कालोव्व महाबिगरालो ॥२३९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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