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अल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥२२॥
बहुल
सुखपूर्वक विहार करते हुए [जेणेव कोल्लागसंनिवेसे तेणेव उवागच्छइ] जहां कोल्ला- पष्ठक्षपण
पारणार्थ गसंनिवेश था वहां पधारे [तएणं से समणे भगवं महावीरे छटुक्खमणपारणे भिक्खायरियदाए बहुलस्त माहणस्त गिहं अणुप्पविटे] वहां श्रमण भगवान् महावीर ने षष्ठ ब्राह्मणगृहे
गमनादि भक्त [बेले] के पारणे के दिन भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण करते हुए बहुल नामक ब्राह्मण IN
वर्णनम् | के घर में प्रवेश किया [तेण बहुलेण माहणेण भत्तिबहुमाणेण पडिग्गाहे खीरं दिण्णं] बहुल ब्राह्मण ने भक्ति और अत्यन्तसत्कार के साथ भगवान् के पात्र में खीर का दान दिया [तत्थ णं तस्स बहुलस्स तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धेणं पडिग्गाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं] वहां उस ब्राह्मण के घर में द्रव्यशुद्ध, दायकशुद्ध, एवं प्रतिग्राहक शुद्ध इस प्रकार तोन करण शुद्धदान से [भगवंमि पडिलाभिए समाणे गिहंसि य इमाइं पंच दिव्वाइं पाउब्भूयाइं तं जहा] भगवान को बहराने पर यह पांच दिव्य प्रकट हुए [वसुहारा वुटा] वसुधारा-वर्ण की दृष्टि हुई [दसवण्णे कुसुमे निवाइए] पांच
॥२२१॥